ओजोन परत क्या है
हमारा वायुमंडल ऊंचाई के अनुसार अनेक मंडलों जैसे अनुमंडल, समताप मंडल, ओजोन मंडल तथा आयन मंडल में विभक्त है।
धरातल से 15 से 40 किलोमीटर की ऊंचाई पर समताप मंडल के ऊपर ओजोन गैस पाई जाती है। ओजोन का सर्वाधिक घनत्व 20 से 25 किलोमीटर के बीच पाया जाता है। ओजोन की मात्रा ध्रुव पर अपेक्षाकृत अधिक है सौर विकिरण का 6% पराबैगनी किरणों का है जिसका भूतल पर आना अत्यंत घातक है। ओजोन मंडल की गैस इस विकिरण के लगभग 5% भाग को सोख लेती है और केवल 1% को ही पृथ्वी तक आने देती है जो हमें हानि नहीं पहुंचाता।
तीव्र औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया ने आज विविध प्रकार के यंत्रों का विकास किया है जिनमें कुछ ऐसी गैसों का उपयोग होने लगा है जो ओजोन गैस के लिए हानिकारक होती है और ओजोन स्तर पर पहुंचकर ओजोन की सुरक्षात्मक परत को हानि पहुंचाता है।
(1) क्लोरोफ्लोरोकार्बन
जब यह गैस ओजोन मंडल तक पहुंचता है तो पराबैगनी प्रकाश की किरणें इसके और उनको तोड़ती है जिसके फलस्वरूप क्लोरीन अलग हो जाती है और यहां बहुत ही घातक सिद्ध होती है।
क्लोरीन ओजोन के अणु से प्रतिक्रिया करके उसे ऑक्सीजन में बदल देता है।
क्योंकि क्लोरीन के ऑडियो अपरिवर्तित रहते हैं परिणाम में यहां क्रिया बराबर होती रहती है।
यह अनुमान लगाया गया है कि क्लोरीन का एक परमाणु ओजोन के 100000 अंगों को नष्ट कर सकता है यही वह रसायनिक अभिक्रिया है जिसने विश्व के समक्ष ओजोन रिक्ति करण जैसा गहरा संकट उपस्थित कर दिया है
(2)
इसके अतिरिक्त हाइलोजन सीएफसी की अपेक्षा 10 गुना क्रियाशील होता है। यद्यपि इसकी मात्रा वायुमंडल में कम है। नाइट्रिक ऑक्साइड भी वायुमंडल में पहुंचता है और ओजोन का विघटन कर देता है
विभिन्न रसायनों में सीएफसी तथा हैलोजन सबसे अधिक हानिकारक है।
यह है कि वायुमंडल में इनका जीवन भी लंबा होता है
ओजोन परत छरण का मुख्य कारण क्या है
(1) ओजोन परत की कमी से त्वचा का कैंसर तथा त्वचा एवं आंखों संबंधित बीमारियां हो जाती है।
(2) ओजोन छिद्र से वनस्पति भी प्रभावित होती है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है कृषि फलो के उत्पादन में कमी आती है।
(3) पराबैगनी किरणे अनुवांशिक गुणों के वाहक डीएनए को हानि पहुंचाती है जिससे त्वचा का कैंसर हो जाता है।
ओजोन परत संरक्षण के प्रयास
ओजोन क्षरण को विश्वव्यापी वैज्ञानिक समुदाय ने काफी गंभीरता से लिया है इस समस्या से निपटने के लिए दो दशकों में प्रयत्न किया जा रहा है प्रथम ओजोन को हानि पहुंचाने वाले रसायनों का उत्पादन तथा उपभोग कम करना अथवा समाप्त करना तथा उनके विकल्प प्राप्त करना।
1987 में मॉडल प्रोटोकॉल ने सन 2000 तक सीएफसी उत्पादन एवं उपभोग में 50% की कमी लक्ष्य स्थापित किया।
1 जनवरी 1989 को अन्य 29 देशों सहित यूरोपीय आर्थिक समुदाय के देशों ने इसका समर्थन किया।
प्रोटोकॉल ने विश्व वैज्ञानिक समुदाय को ओजोन क्षरण की समस्या के समाधान हेतु विचार करने के लिए काफी प्रेरित किया
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