वन संसाधन क्या है ? वन संसाधन की उपयोगिता एवं संरक्षण के उपाय बताइए। 



                     वन संसाधन 

               ( Forest Resources)





इस पृथ्वी पर विद्यमान सभी जीव धारियों का जीवन मिट्टी की एक पतली पर्त पर निर्भर करता है। वैसे यह कहना अधिक उचित होगा कि जीव धारियों के जीवन चक्र को चलाने के लिए हवा, पानी और विविध पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है और मिट्टी इन सब को पैदा करने वाला स्रोत है। यह मिट्टी वनस्पति जगत को पोषण प्रदान करती है जो समस्त जंतु जगत को प्राणवयु जल पोषक तत्व प्राण दायिनी औषधियां मिलती है बल्कि इसलिए भी है कि वह जीवन आधार मिट्टी बनाती है और उसकी सतत रक्षा भी करती है इसलिए वनों को मिट्टी बनाने वाले कारखाने भी कहा जा सकता है।


वनों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। अनेक आर्थिक समस्याओं का समाधान इन्हीं से होता है। ईंधन, कोयला, सदी युक्त तेल व जड़ी बूटी, लाख, गोंद, रबड़, चंदन इमारती समान और अनेक लाभदायक पशु पक्षी और कीट आदि वनों से प्राप्त होते हैं।


प्रारंभ में पृथ्वी का लगभग 25% भाग वनाच्छादित परंतु विभिन्न उद्देश्यों वनों की सतत कटाई एवं अंधाधुन उपयोग के कारण अब पृथ्वी के केवल 15 परसेंट भूभाग पर ही 1 शेष रह गए हैं जिसके कारण आज विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं जैसे अल्प वर्षा बाढ़ मृदा क्षरण भूस्खलन आदि में वृद्धि हो रही है।



 

    वन संसाधन के अति दोहन के प्रमुख कारण



(1) वृक्षों की अंधाधुंध कटाई - स्वतंत्रता के पश्चात निरंतर जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि उद्योग विकास के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई से भारत में वनों का क्षेत्रफल अत्यंत कम हो गया। ग्रामीण क्षेत्रों में मकान के निर्माण तथा जलाऊ इंधनके लिए वनों को काटा जाता है। शहरों में स्थापित उद्योग में कच्चे माल जैसे ही ईमारती लकड़ी की पूर्ति के लिए वनों को काटा जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप भारत के अधिकांश फोन क्षेत्र में आज नग्न भूमि में परिवर्तित हो चुके हैं।


(2) वन अग्नि -  मानवीय या प्राकृतिक कारणों से वनों में आग लग जाती है इससे वन जलकर नष्ट हो जाते हैं।


(3) वनों के क्षेत्रफल में कमी - कृषि के विस्तार, उद्योग स्थापित करने तथा मानव बस्ती के लिए आजकल वन भूमि का उपयोग किया जा रहा है जिसके परिणाम स्वरूप वन भूमि के क्षेत्रफल में कमी आ रही है।


(4) वन भूमि का कृषि भूमि में परिवर्तन - आबादी बढ़ने के साथ-साथ भोज्य पदार्थों की आपूर्ति हेतु कृषि भूमि का विस्तार हो रहा है। इसके लिए वनों की कटाई की जाती है तथा उसके स्थान पर कृषि भूमि विकसित की जाती है इससे वनों का विनाश हो रहा है।


(5) अति चारण - पालतू पशुओं एवं जंगली जानवरों के साथ के मैदानों एवं वन भूमि में उपस्थित गांव से एवं पेड़ पौधों की सतत चराई भी वन विनाश का प्रमुख कारण है।


(6) वनों का चारागाहो में परिवर्तन - पालतू पशुओं के चारे आपूर्ति एवं चढ़ई हेतु वनों को काटकर उसे चारा गांव में परिवर्तित करना भी वन विनाश का एक कारण है


(7) बहुउद्देशीय नदी घाटी योजनाओं बांधो नहरों आदि के निर्माण के लिए एक वृहद वन क्षेत्र को समाप्त करना पड़ता है इसके कारण उस स्थान की प्राकृतिक वन संपदा का समूल विनाश हो जाता है तथा उस स्थान का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ जाता है।


(8) स्थानांतरिया या झूमिंग कृषि - झूमिंग कृषि दक्षिण एवं दक्षिण पूर्वी एशिया के पहाड़ी क्षेत्रों में वनों के  एवं विनाश का एक प्रमुख कारण है। कृषि की इस प्रथा के अंतर्गत पहाड़ी ढालो पर वनों को जलाकर भूमि को साफ किया जाता है। जब उस कृषि की उत्पादकता घट जाती है तो उसे छोड़ दिया जाता है


(9) खनिज खनन -  खनिजों के खनन हेतु वनों को साफ किया जाता है। व्यापारिक स्तर पर किए जाने वाले खनन के दौरान वन विनाश होता है। वन विनाश के उपरांत खनन करते हैं तथा खनन हेतु वृहद गड्ढों का निर्माण हो जाता है जिनका पुनः उस रूप में विकसित किया जाना संभव है यदि पुनर्स्थापित कर भी देते हैं तो बहुत समय लगता है संयुक्त राज्य अमेरिका में पेंसिलवेनिया कोयला क्षेत्र लौह क्षेत्र में खनन कार्य कार्य द्वारा वृहद स्तर पर वन विनाश हुआ है।





          वन संसाधन का संरक्षण 


     (Conservation of forest resources)





वनों की उपयोगिता को देखते हुए हमें इसके संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए - 

1. वनों के पुराने एवं क्षतिग्रस्त पौधों को काटकर नए पौधे वृक्षों को लगाना चाहिए।

2. नए वनों को लगाना या वनआरोपण अथवा वृक्षारोपण करना चाहिए।

3. अनुवांशिकी के आधार पर ऐसे वृक्षों को तैयार करना चाहिए जिससे वन संपदा का उत्पादन बढ़े।

4. पहाड़ एवं परती भूमि पर वनों को लगाना चाहिए।

5. वनों को आग से बचाना चाहिए।

6. जली वनों की खाली प्रति भूमि पर नए वन लगाना।


7. वन कटाई पर प्रतिबंध लगाना।

8. शहरी क्षेत्रों में सड़कों के किनारे चौराहे तथा व्यक्तिगत भूमि पर पादप रोपण को प्रोत्साहित करना।


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