जब मैं ट्रेन में चढ़ा तो पहले ही सोच लिया था कि मैं दिन का समय ट्रेन में सोते हुए बताऊंगा ताकि रात को 2:00 बजे मेरा स्टेशन है तो मैं जागा रह सकूं मैं अपनी सीट पर बैठा और ट्रेन धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी ट्रेन में बहुत भीड़ थी लोग उतरते चढ़ते बहुत ज्यादा भीड़ थी मैं अपने ही सीट पर अकेला और अजनबी की तरह बैठा हुआ था खैर जब प्राप्त 9:00 बजे तो मुझे मेरा पूरा सेट मिल सका









फिर मुझे नींद आने लगी थी और मैं सोने के लिए बैठ गया

जैसा कि मुझे पता था कि अभी काफी वक्त है मेरा स्टेशन आने 


फिर मैंने अपना घड़ी देखा तो रात की 2:30 बजे थे मैं टाइम देखकर हैरान हो गया मैंने अपने बगल वाली सीट में बैठे व्यक्ति से पूछा कि मेरा स्टेशन आ गया है कि नहीं


फिर उसने बताया कि वह स्टेशन कब का निकल गया है

यह सुनते ही मैंने तुरंत खिड़की की ओर देखा बात कर रही थी तू ट्रेन अभी एक छोटे से स्टेशन को पार कर रही थी मैंने ट्रेन की चेन खींच दी


और ट्रेन से उतर गए और मैं ट्रेन से उतर गया हूं और ट्रेन कुछ देर के लिए रुकी फिर वहां से चली गई स्टेशन पर काफी अंधेरा था


सामने काफी पेड़ और खेत नजर आ रहे थे

जब मैंने अपने दोस्त को फोन किया है तो उसका फोन लगा ही नहीं

क्योंकि वहां पर नेटवर्क ही नहीं था


मगर काफी वक्त बीतने के बाद भी नेटवर्क नहीं मिला

मैं थोड़ा डर गया था

एक तो रात का वक्त और ऊपर से अनजान और सुनसान जगह

एक अजीब सी बेचैनी होने लगी थी मुझे

मैं उसी स्टेशन पर खड़ा होकर बस नेटवर्क का आने का इंतजार कर रहा था


कि तभी मेरे फोन की रिंग बजी मैंने तुरंत ही फ़ोन उठाया

फोन पर मेरा दोस्त था जो मुझसे पूछ रहा था कि कहां तक पहुंचा है तू इस पर मैंने उसे सारी बात बता दी मेरी बात सुनने के बाद वह बोला तू वही रुक मैं 20 मिनट में आता हूं


तू चिंता मत करना फोन पर बात करने के बाद मैंने फोन रखा ही था

कि मुझे पटरियों पर कुछ सरकता हुआ नजर आया

तो उस वक्त काफी अंधेरा होने के कारण सही से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था

सही से देखने के लिए जैसे ही मैंने फोन की लाइट चालू किया तो

उस सरकती हुई चीज पर डाली तो








तो एकदम से मेरी सांसे थम सी गई और चीख भी निकल आई

दरअसल वह एक कटा हुआ हाथ जो पटरियों पर सरक रहा था

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं कि कभी मुझे परयों के उस पार के झाड़ियों से अजीब से रोने की आवाज आने लगी


जिसे सुनकर तो मेरा दिल ही बैठ गया फिर मुझे ऐसा लगा कि पटरियों पर से बहुत सारी रखने की आवाजें आने लगी मैं परस से दूर एक दीवार से सटा डरा सहमा खड़ा हो गया कटा हुआ हाथ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा है

 साथ ही रोने की आवाज और भी तेज हो गई थी

मैंने वहां पर से भागने की सोची मगर मेरा पैर जम सा गया था


मैं चाह कर भी अपना पैर नहीं हिला पा रहा था  

मैं रोता हुआ वहीं पर बैठ गया मेरा दिमाग बिल्कुल भी काम नहीं कर रहा था मैं बस डर से रोने लगा था मगर वहां कोई भी नहीं था जो मेरी मदद कर सके देखते ही देखते

वह हाथमेरी आंखों के सामने प्लेटफॉर्म पर चढ़ गया 


मुझे बहुत डर लग रहा था

तभी सामने से कोई गाड़ी चलती हुई मेरे पास मे आया

वह mera दोस्त था उसे देखकर मेरा डर थोड़ा कम हो गया

फिर मैंने उसे सारी बात बता दी


तब उसने बताया कि ऐसे छोटे-छटे स्टेशनों पर कई सारी मौतें होती है







और रात को उन सब की आत्माएं उस स्टेशन पर इधर उधर भटकती रहती है इसलिए रात को वही सशन भूतिया स्टेशन

हो जाया है।

आपको यह पोस्ट कैसी लगी कॉमेंट मे जरूर बताएं या फिर कोई और सच्ची भूतिया घटना के बारे मे जानना चाहते हैं तो जरूर बताएं


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