ईदगाह कहानी का सारांश लिखिए। मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह















ईदगाह का अर्थ है ईद के दिन नमाज पढ़ने का स्थान। जहां सभी मुसलमान आपस में भाईचारे एवं प्रेम भाव से एक स्थान पर नमाज पढ़ते हैं। ईदगाह कहानी प्रेमचंद द्वारा रचित बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। यह बहुत ही उत्कृष्ट रचना है इनमें मानवीय संवेदना एवं जीवन मूल्यों के तथ्यों का समावेश है।


गांव में हलचल मची है, सभी ईदगाह जाने की तैयारी में लगे हैं। किसी भी त्यौहार में सबसे अधिक उत्साह बच्चों में देखने को मिलती है। त्यौहार के पहले ही उस दिन का इंतजार एवं तैयारियां शुरू हो जाती है। बालमन उत्साही होता ही है। वे गृहस्थ की विभिन्न समस्याओं से तनाव से दूर रहते हैं मानव व उनके सोचने विचारने का विषय ही नहीं। उन्हीं बालकों में हामिद और उनके मित्र हैं जो ईदगाह जाने की तैयारी में जुटे हुए हैं।


किसी के पास 12 पैसे हैं तू किसी के पास 15 पैसे। अमित के पास तीन पैसे हैं। अमित चार-पांच साल का बालक है जो अपनी बूढ़ी दादी अमीना के साथ रहता है।


उनके माता पिता का निधन हो चुका है परंतु उसे बताया गया कि उसके अब्बा जान रुपए कमाने गए हैं और अम्मी जान मियां के पास गई है, वहां से हामिद के लिए अच्छी-अच्छी चीजें, खिलौने लाने वाली है। अमित प्रसन्ना है कि जब उसके अब्बा जान और अभी जान आएंगे तो दिल खोल कर वहां अपनी इच्छाएं पूरी करेगा।



बूढ़ी दादी अमीना की आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय है । उनके पास खाने को दाने नहीं हैं दादी चिंता में डूबी है कि हम इसको अकेले मेले में कैसे जाने दें और साथ में वे स्वयं जाएगी तो सेवैया कौन पकाएगा ? अमित अपनी दादी से कहता है कि तुम डरना नहीं अम्मा मैं सबसे पहले आऊंगा बिल्कुल नहीं डरना।



गांव के अन्य बच्चों के साथ हामिद में मेले जाने के लिए निकला 3 कोस चलने के बाद ईदगाह आया। ईदगाह में अमीर गरीब में कोई भेद नहीं, सभी एक साथ नमाज पढ़ते हैं एवं एक दूसरे से गले मिलते हैं।



मेले में खिलौने और मिठाइयों की दुकान पर लोगों की भीड़ बढ़ती है अमित के सभी मित्र खिलौने खरीदते हैं मिठाइयों एवं अन्य मनोरंजन की चित्रों पर खर्च करते हैं।



परंतु हामिद खिलौने की निंदा करता है कि मिट्टी के तो हैं गिरेंगे तो चकनाचूर हो जाएंगे। परंतु बालमन खिलौने एवं मिठाइयों के लिए ललचाता भी है। लेकिन उसके पास तीन पैसे हैं कुछ चीजों के दाम पूछ कर उसमें गुण दोषों का विचार कर आगे बढ़ जाता है।


लोहे की दुकान को देखकर हमीद रुक जाता है अन्य बालकों को उसमें कोई आकर्षण नहीं था अभी आगे बढ़ जाते हैं दुकान में लोहे के चिमटे देखकर हामिद को बूढ़ी दादी का ध्यान आता है कि दादी के पास चिंता नहीं है।
रोटियां बनाते समय तवे  से उनका हाथ जल जाता है यदि वह चिंता लेकर दादी को दे तो वहां कितनी खुश हो जाएगी। उनकी अंगुलियां भी नहीं जलेगी। घर में एक काम की चीज आ जाएगी उसने दुकानदार से चिमटे की कीमत पूछी और एक चिमटा खरीद लिया



कंधे पर बंदूक की भांति रखकर चलने लगा। उसके मित्रों ने उसकी हंसी उड़ाई परंतु हामिद ने अपने तर्कपूर्ण जवाब से सब को शांत कर दिया।
घर पहुंचकर हामिद ने दाती को बताया कि उसने मेले में चिंता लिया है। अमीना ने छाती पीट ली, यह कैसा भी समझ लड़का है कि बिना कुछ खाए पिए मेले से चिंता खरीद कर लाया है। हम इतने अपराधी भाव से कहा तुम्हारी अंगुलिया तवे से जल जाती है इसलिए मैंने इसे लिया है।



दादी का क्रोध शांत हो गया और वह इस नेहा से भर उठी कि बच्चे में कितना विवेक है, दूसरों को खिलाने लेते एवं मिठाइयां खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा, परंतु फिर भी इसने अपनी बूढ़ी दादी के बारे में सोचा। अमीना का मन गदगद हो गया वह रोने लगी और हामिद को दुआएं देने लगी।

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