बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी ईदगाह भारतीय जनमानस के प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा रचित कहानी के तत्वों के आधार पर ईदगाह कहानी की समीक्षा इस प्रकार की जा सकती है।






(1) कथानक या  कथावस्तु -

मुंशी प्रेम जी की सुप्रसिद्ध कहानी ईदगाह का कथानक माता-पिता विहीन बालक के इर्द-गिर्द घूमता है जो अपनी मां के साथ रहता है दोनों अत्यंत निर्धनता में जीवन जी रहे हैं। ईद का त्यौहार आ गया है। अन्य बच्चों की भांति हामिद भी रोमांचित है उसे भी जाने और मेला देखने की उत्साह होता है लेकिन हम इना चिंतित है। उसके पास हामिद को देने के लिए पैसे नहीं है हामिद के पहनने के लिए ना अच्छे कपड़े हैं और ना जूते हैं फिर भी अमीना उसे 3 पैसे देती है।

हामिद अपने दोस्तों के साथ मेला देखने जाता है उसके साथियों के पास काफी पैसे हैं वह मेले में झूला झूलते हैं मिठाइयां खाते हैं और अपने लिए खिलौने खरीदते हैं लेकिन हम दूर खड़ा उनके तरफ देखता रहता है वहां की चीजों को और अपने तीन पैसे खर्च नहीं करना चाहता है।
अंत में हामिद लोहे का एक चिंता खरीदना है उसे लगता है या चिंता उसकी दादी मां के काम आएगा और रसोइयों में रोटी सेकते हुए उसकी अंगुलियां नहीं  जलेगी । बाकी सभी बच्चों के मिट्टी के खिलौने एक-एक करके टूट जाते हैं जबकि हामिद कर लिया हुआ चिंता बचा रहता है


उसकी दादी आदमी द्वारा लाए गए तो कहीं को देखकर भाव विहीन हो जाती है और अपनी छाती से लगा लेती है एक छोटे बच्चे ने अपनी इच्छाओं को जब तक करके अपनी दादी मां के प्रति जिस स्नेहा सद्भाव और विवेक का परिचय दिया है वहां पाठकों के हृदय को द्रवित कर देता है।

कथानम संक्षिप्त  है मुंशी प्रेमचंद जी ने कथन का विस्तारित के ग्रामीण उत्साह नगर वार्ड का मेले के दृश्य का वर्णन किया है इस प्रकार इस संस्थान में और मौलिकता गंभीरता जिज्ञासा आदि सभी गुण मिलते हैं।







(2) पात्र का चरित्र चित्रण - 


ईदगाह कहानी का मुख्य पात्र हामिद है सारी कहानी उसी के इर्द-गिर्द घूमती है वह अपनी बाल सुलभ इच्छाओं आकांक्षाओं सपनों जिज्ञासु आदि से जहां अपने बचपन की झलक प्रदान कर आता है वही अपने सभी इच्छाओं को दबाकर अपनी बूढ़ी दादी मां के लिए चिंता खरीद कर अपनी दादी के प्रति अपने प्रेम तथा परिपक्वता का परिचय देता है।


कहानी का दूसरी पात्र बूढ़ी मां है जो अपने पुत्र तथा पुत्र वधू की मृत्यु के बाद अपने पोते हामिद का पालन पोषण कर रही है अपने पोते को सभी सुख साधन देने की लाचारी पाठकों के हृदय को द्रवित करता है। नीमा का भाव पूर्ण अदृश्य कहानी को नए आयाम प्रदान करता है इसके अतिरिक्त महमूद मोहसिन शम्मी आदि पात्र भी हैं यद्यपि यहां गॉड पात्र है परंतु फिर भी कहानी को अपने चरखो तक पहुंचाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।



(3) देशकाल व वातावरण - 


देश काल का संबंध कहानी के स्थान समय और परिवेश से होता है। देशकाल व वातावरण की दृष्टि से ईदगाह एक उत्कृष्ट कहानी है। कहानी पूरी तरह कल्पित होने पर भी अपने समय के सजीव वातावरण की सृष्टि करती है। कहानी में मुंशी प्रेमचंद जी ने पिछली सदी के प्रारंभिक समय व ग्रामीण और शहरी परिवेश का चित्रण किया है । ईद के त्यौहार का वर्णन रोजे ईदगाह की दृश्य व मेले की रौनक का सजीव वर्णन करके प्रेमचंद जी ने कहानी को वातावरण व देश काल की दृष्टि से सफल बनाया है।




(4) संवाद व कथोपकथन -



संवादों का कहानी में महत्वपूर्ण स्थान होता है। संवाद कहानी को रोचक एवं गतिमान बनाते हैं। ईदगाह कहानी में संवाद हुआ कथाकथन कथन के अनुसार रख गए हैं ईदगाह जाते समय बच्चों के साथ कहीं कहीं किसी बुद्धिजीवी के संवाद लगते हैं।






(5) भाषा शैली -


ईदगाह कहानी की भाषा में तत्सम तद्भव उर्दू फारसी व अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग किया गया है। कहानी ईदगाह में ईद के त्यौहार और एक मुस्लिम समाज की कहानी है ऐसी अवस्था में उर्दू फारसी के शब्दों का होना स्वाभविक है।

उर्दू के शब्द रमजान रोजे अजीब रहो ना खबर खैरियत तकदीर सलामत जी के भी अनेक शब्द मिलते हैं जैसे कॉलेज क्लब कैरम  आदि मुहावरे और लोकोक्तियां का भी सुंदर प्रयोग किया गया है।



उद्देश्य -


प्रत्येक साहित्य रचना का कोई न कोई उद्देश्य होता है इस कहानी का मुख्य उद्देश्य इस तथ्य की अभिव्यक्ति है कि गरीबी लाचारी और बेबसी में बच्चे छोटी उम्र में ही परिपक्व हो जाते हैं
। हमें द्वारा अपनी इच्छाओं को दफन करके अपनी बूढ़ी दादी मां के लिए चिमटा खरीदना इस तथ्य को प्रमाणित करता है माता पिता विहीन गरीब बच्चों की मनोदशा उनके अभिशप्त जीवन, जीवन यापन की समस्या भ्रष्टाचार आदि का चित्रण करना भी प्रस्तुत कहानी का उद्देश्य है

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