सवाल : स्वामी विवेकानंद के पत्र की विशेषताएं लिखिए?
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 22 जनवरी सन 1863 को कलकत्ता में हुआ । उनके घर का नाम नरेंद्र दत्ता था। उनके पिताजी विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। नरेंद्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। स्वामी जी वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। अमेरिका स्थित शिकागो में सन 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किए थे। स्वामी जी रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। 4 जुलाई सन 1902 को स्वामी जी का देहांत हो गया।
11 सितंबर सन 1893 में शिकागो विश्वधर्म परिषद हो रही थी। स्वामी विवेकानंद जी उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे। यूरोप अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारत वासियों को हिंदुस्तान से देखते थे। वहां लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानंद को सर्व धर्म सभा में बोलने का समय ही ना मिले। एक प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें बोलने का मौका मिला। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत बहनों और भाइयों शब्दों का संबोधन करते हुए किया। इसके बाद उनके विचार सुनकर उपस्थित सभी विद्वान चकित हो गए। अमेरिका में उनका बहुत स्वागत हुआ। 3 वर्षों तक अमेरिका में रहे और वहां के लोगों को भारतीय तत्व ज्ञान की ज्योति प्रदान करते रहे।
स्वामी जी के पत्र बहुत ही शिक्षाप्रद हैं, कई बार बहुत रोचक शैली में लिखे हुए हैं। उन्हें बहुत आसानी से समझा जा सकता है लेकिन उनके हर पत्र हमें जीवन के लिए बड़ा संदेश देते रहे हैं। स्वामी विवेकानंद द्वारा मैसूर के महाराज को 23 जून 1894 को पत्र लिखा गया था। इस पत्र में उनकी मान्यताओं, भावनाओं और जीवन दर्शन की झलक मिलती है। उनके पत्र में पाश्चात्य राष्ट्र के प्रति चिंतन, महिलाओं के लिए वहां के धन वैभव के लिए जो उनका धर्म है उनके पतन के बारे में, भारत के गरीबों के उन्नत नैतिक चिंतन के बारे में, भारत के मर्यादित स्त्रियों के बारे में तथा वेद दर्शन के विचार किए हैं।
शिकागो में, स्वामी विवेकानंद जी पहले भाषण में कहते हैं कि जैसा सम्मान उनको मिला है उस पर वह कहां पर प्रसन्न हैं, वे कहते हैं कि वह ऐसे देश से आते हैं जहां पर लोग रोज सुबह शाम भगवान का नाम लेते हैं, ऐसा देश जिसमे कई शरणार्थियों को शरण दी, ऐसा देश जिसमे दुनिया को विश्वव्यापी और स्वीकार्यता सिखाई, स्वामी जी की अलग-अलग धारणाएं अलग-अलग छूट जाती है परंतु अंत में वहां समुद्र में मिल जाती है। इस प्रकार अलग-अलग लोग अलग-अलग गुण, प्रवृत्तियों के होते हैं परंतु सभी भगवान के पास जाते हैं। लड़की हर चिट्ठी किसी न किसी आयाम की गहराई से पड़ताल कर उसे उजागर करती है।
आप अच्छा कर रहे हैं। आपने स्वामी विवेकानंद की अच्छी व्याख्या की है। शुभकामनाएं।
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