पत्र लेखन क्या होता है ।











पत्र - लेखन साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है, जिसके अंतर्गत हमारे दैनिक जीवन के दुख - सुख के अनेक क्रियाकलाप, विचारों का आदान - प्रदान अत्यंत स्वाभाविक ढंग से साहित्य का एक अंग बन जाते हैं। छात्र जीवन से इसका विकास होने लगता है। वह अपने इष्ट मित्रों, गुरुजन आदि को पत्र लेखन द्वारा हृदय गत भाव से अवगत कराता है। यह जीवन का अनिवार्य अंग है। मानव अपने स्वाभाविक भावों की अभिव्यक्ति पत्र लेखन द्वारा ही करता है। कई पत्र अपने युग के ऐतिहासिक दस्तावेज बन जाते हैं। जवाहरलाल नेहरू द्वारा इंद्र जी को लिखा गया पत्र  " पिता का पत्र पुत्री के नाम " से प्रसिद्ध है।


जेम्स होवेल के अनुसार  - कुंजिया बॉक्स खोलती है । पत्र हृदय के विभिन्न पटल खोलते हैं । इनमें एक और जहां आत्मानुभूति व्यक्त होती है। वहीं दूसरी ओर उस युग का इतिहास, सभ्यता, संस्कृति और परंपराएं भी उनमें झलकती रहती है। इनमें वर्ग चेतना भी मिल जाती है और जिंदगी की उबड़ खाबड़ डगर पर हिचकोले खाती संवेदना के मार्मिक चित्र भी मिल जाती हैं।



पत्राचार एक ऐसा माध्यम है, जो दूरस्थ व्यक्तियों की भावना एवं पाने वाले की भावना को जोड़ देता है। पत्र लेखन वयक्तिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यवसायिक एवं प्रशासनिक जीवन के लिए आवश्यक है। जन्म मरण, विवाह, हर्ष, शोक के संदर्भ में पत्रों द्वारा सूचना दी जाती है। व्यवसायिक जीवन में ग्राहकों के साथ घनिष्ठ संबंध पत्रों द्वारा संभव है। पत्र लेखन व्यवहारिक जीवन में सेतु का काम करता है। प्रशासन से संबंधित सूचना एवं निर्णय आदि भी पत्रों के माध्यम से संबंधित व्यक्ति तक पहुंचाया जाता है। आजकल पत्र लेखन एक कला है इसलिए पत्र लेखन करते समय विशेष सावधानी की आवश्यकता है।



       पत्र कितने कितने प्रकार के होते हैं ।



पत्र लेखन जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। अपने दैनिक जीवन में कभी स्वजनों को कभी कार्यालय को और कभी व्यवसाय से संबंधित पत्र लेखन की आवश्यकता पड़ ही जाती है। इस तरह पत्रों को मुख्य तौर पर दो वर्गों में बांटा जा सकता है


(1) औपचारिक पत्र।         


(2) अनौपचारिक पत्र ।




(1) औपचारिक पत्र - औपचारिक पत्र अत्यंत संयमित, स्पष्ट भाषा शैली में विधि संगत रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। इसके अंतर्गत अधिकारियों के पत्र, व्यापारिक पत्र, समाचार पत्रों को लिखे जाने वाले पत्र, अशासकीय एवं शासकीय अधिकारियों को लिखे जाने वाले पत्र आदि आते हैं। इसमें तकनीकी शब्दावली के प्रयोग होते हैं। इसमें मुख्यतः तीन प्रकार के पत्र आते हैं

(१) सरकारी पत्र।         (२) अर्ध सरकारी पत्र।   


 (३)   व्यवसायिक पत्र।



(2) अनौपचारिक पत्र - इसके अंतर्गत निजी एवं परिवारिक पत्र लेखन आते हैं । इसकी भाषा एवं शैली खुली रहती है। पत्रलेखा अपनी इच्छा अनुसार इसमें अभिव्यक्ति दे पाता है। यह पत्र सगे संबंधी, मित्र, गुरुजन , माता पिता, भाई बहन आदि को प्रेषित किए जाते हैं। इसे मुख्यतः दो वर्गों में बांटा गया है।


(१) सामाजिक पत्र।          (२) निजी पत्र ।


सामाजिक पत्र में निम्नलिखित पत्र आते हैं।


(१) विविध पत्र  ।  

(२) बधाई पत्र ।

(३) परिचय पत्र ।

(४) आमंत्रण पत्र।

(५) शोक पत्र ।





औपचारिक पत्र तथा अनौपचारिक पत्र में अंतर




(1) अनौपचारिक पत्र में व्यक्तिगत बातें एवं भाव की प्रधानता रहती है, परंतु औपचारिक पत्र का निश्चित स्वरूप एवं प्रतिमा रहता है ।



(2) अनौपचारिक पत्र के लिए वार्तालाप और आत्मीय शैली महत्वपूर्ण होती है, परंतु औपचारिक पत्र का लेखन पर्याप्त सूझबूझ के साथ उपयोग का तरीका एवं तकनीकी शैली में लिखे जाते हैं ।




(3) अनौपचारिक पत्र किसी भी रूप में स्वीकार किए जाते हैं। इसमें घनिष्ठता विश्वसनीयता ,निकटता ,एवं प्रगाढता झलकती है
परंतु अब चारिक पत्र निर्धारित स्वरूप के अभाव में अस्वीकार कर दिए जाते हैं ।





      अच्छे पत्र कैसे लिखते है ।


पत्रों को प्रभावशाली एवं प्रेषणीय होना चाहिए। अच्छे पत्रों में निम्न विशेषताएं होनी चाहिए - 


(1) स्पष्टता - पत्र लिखते समय लेखक विशेष रूप से यह ध्यान रखें कि अपने भव्य विचारों को क्रमबद्ध रूप में व्यक्त करें। जिससे पाठक लेखक के विचारों को स्पष्ट रूप से समझ सके। प्रशासनिक तथा व्यवसायिक जीवन में संबंधित पत्रों में स्पष्टता और आवश्यक रहती है


(2)  सरल भाषा का प्रयोग -  पत्रों को शुद्ध एवं सरल भाषा में लिखना चाहिए। अलंकारिक एवं ध्रुव पदों का प्रयोग वर्जित है। पद  छोटे छोटे हो, इससे अर्थ की सार्थकता। स्वयं ही समझ में आती है ।




(3) संक्षिप्तता -  पत्र लेखन में यह ध्यान रखें कि पत्र बहुत बड़ा ना हो । समय की मांग के अनुरूप पत्र संक्षिप्तता  लिए हो तभी वह स्वीकार्य होगा ।


(4) संपूर्णता - पत्र संक्षिप्त लिखने की आपाधापी में कोई विचार अधूरे ना हो। विचार के पूर्णता से ही भावार्थ स्पष्ट होता है। अतः जो बातें व्यक्त की जाए, वहां अपने आप में संपूर्ण हो। ऐसे पत्र ही श्रेष्ठ एवं आदर्श पत्र माने जाते हैं


(5) शुद्धता -  पत्र के विषय में शुद्धता आवश्यक है । पत्र लिखते समय काल, लिंग, वचन, पूरी आदि का ध्यान रखते हुए पत्र पूर्ण करें । व्यवसाय किया प्रशासनिक पत्रों में इसका अत्यधिक महत्व है ।


(6) शिष्टता -  पत्र के द्वारा लेखक का व्यक्तित्व जाना जाता है। अतः पत्र में शालीनता पूर्वक अपनी बातों को व्यक्त करना चाहिए। व्यवसायिक पत्रों में, पत्रों के द्वारा ग्राहकों को आकर्षित किया जाता है, इसलिए उसमें नम्रता जरूरी हो जाता है। श्रेष्ठता के अभाव में कोई भी पत्र चाहे जितना अच्छा क्यों ना लिखा हो निष्प्राण दिखाई देता है ।

 
(7) प्रभावोपादक  -  पुत्र इतने रोचक एवं आकर्षक शैली में लिखे जाएं कि पढ़ते ही पाठक प्रभावित हो और पत्रों में लिखी गई बातों को सहजता से मान ले। महात्मा गांधी तथा प्रेमचंद के पत्रों में यही गुण थे, जिसके कारण पढ़कर व्यक्ति उनके भाव के अनुरूप हो लिया करते थे ।

 

(8) पत्रों में बाहरी सजावट - पत्रों में भारी सजावट निम्नानुसार होना चाहिए 


(क) लिखावट सुंदर होनी चाहिए ।


(ख) शीर्षक, तिथि, अभिवादन, अनुच्छेद आदि का यथा स्थान उल्लेख हो।


(ग) विराम चिन्हों का उचित प्रयोग वांछित है।


(घ) विषय वस्तु के अनुपात में कागज का उपयोग ।










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